Thursday, November 7, 2019

Do you not understand hard currency or soft currency?.....

                           प्यारे विद्यार्थियो अर्थशास्त्र की कक्षा में आपका फिर से स्वागत है। क्यों न आज रविवार का सदुपयोग किया जाये। हो सकता है की आज का टॉपिक थोड़ा लम्बा हो जाये।  इसलिए धेर्ये बनाये रखें। पिछली कक्षा में हमने  भारत में बैंकिंग प्रणाली के इतिहास को पढ़ा था। इस कक्षा में एक नया टॉपिक शुरू किया जायेगा। नमस्कार मैं हूँ विनय चलिए आज कुछ नया सीख लेते  है। .....
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                   आज मै आपको मुद्रा के टॉपिक को समझाना चाहता हूँ। जैसे की आप जानते हैं की मुद्रा विनिमय का माध्यम होती है। चूँकि में गहराई से समझने में विश्वास रखता हूँ (थोड़ा सा पागल हूँ ना , कम समझाने में सब्र नहीं होता। ......हाहाहाहा 😋) इसलिए थोड़ा सा विस्तार से समझ लेते हैं।
                  आइये अब वर्तमान से दूर थोड़ा सा प्राचीन समय की यात्रा कर लेते है। आप अनुभव कीजिये की आप सिंधु सभ्यता या मेसोपोटामिया सभ्यता में घूम रहे है।  आप चारों तरफ नजर दौड़ाइये आपको अनुभव हो रहा होगा की कुछ लोग खेती कर रहे हैं  तो कुछ लोग अपने पशुओं के साथ  संलिप्त हैं। लेकिन इसी बिच भतेरी ताई की एंट्री होती है जो की अपने थैले में कुछ लिए हुए है। ओहो उनके थैले में तो गेहूं है और वो रामु काका की दुकान से गेहूं के बदले दाल लेने आयी है।
              इसका मतलब एक वस्तु के बदले वस्तु का आदान प्रदान हो रहा है जिसे हम वस्तु विनिमय (BARTER SYSTEM) कहते हैं। लेकिन वर्तमान में किसी वास्तु के बदले मुद्रा खरीद सकते है। अर्थात हम बात कर रहे हैं की 500 रुपए के नोट के बदले में 500 रुपए कीमत वाला सामान खरीदा जा सकता है। लेकिन इस नोट में प्रयोग होने वाली सामग्री की कीमत 500 नहीं हैं।
इसी मुद्रा के कुछ प्रकार मैंने समझाने की कोशिश की है। 
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मुद्रा के निम्नलिखित प्रकार हो सकते हैं:

सुलभ मुद्रा (Soft  Money): 

जिस मुद्रा की पूर्ति की तुलना में मांग कम होती है, सुलभ मुद्रा कहलाती है। इस प्रकार की मुद्रा का प्रयोग भी केवल अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में ही होता है। [Supply ⬆ - Demand ⬇]
नोट:  लगभग सभी  विकासशील देशों की मुद्रा सुलभ मुद्रा होती है लेकिन यहाँ पर एक बात ध्यान देने की है की जो भी करेंसी जिस देश के द्वारा जारी की जाएगी वह करेंसी उस देश में वह हमेशा की हार्ड करेंसी की रहेगी। चलिए मै आपको एक उदहारण से समझा देता हूँ। हम भूटान देश को ही ले लेते हैं वह विश्व का सबसे गरीब देश है लेकिन उसकी करेंसी उस देश में हार्ड होगी क्योंकि वहां उसकी डिमांड भी है और एक्सेप्टेबल भी। 

दुर्लभ मुद्रा (Hard Money): 

जिस मुद्रा की आपूर्ति की तुलना में मांग लगातार अधिक होती है। वह मुद्रा दुर्लभ मुद्रा कहलाती है। इस प्रकार की मुद्रा का प्रयोग केवल अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में ही होता है। अर्थात इस मुद्रा को आसानी से पूरी दुनिया में बदला जा सकता है। [Supply  - Demand ]
नोट:  यहाँ पर एक बात जरूर याद रखियेगा की लगभग जितने भी विकसित देश है उन सबकी मुद्रा दुर्लभ मुद्रा  होती है।  जैसे की USA ($) की  है। 

वास्तविक मुद्रा (Proper Money): 

दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली अर्थात किसी देश की वास्तव में प्रचलित मुद्रा को ही वास्तविक मुद्रा कहा जाता है। यह मुद्रा देश में विनिमय के माध्यम तथा सामान्य मूल्य मापक के रूप में प्रचलित होती है। इसे यथार्थ मुद्रा या साधारण मुद्रा भी कहा जाता है।
उदहारण : भारत में प्रचलित नोट तथा सिक्के वास्तविक मुद्रा के ही उदहारण है।

ऐच्छिक मुद्रा (Optional Money ): 

जिस मुद्रा को भुगतान के रूप में स्वीकार करना अथवा न करना पूर्णता प्राप्तकर्ता की इच्छा पर निर्भर करता है। अर्थात इस मुद्रा को भुगतान के रूप में स्वीकार करने के लिए वैधानिक रूप से प्राप्तकर्ता ही जिम्मेवार होता है।
उदहारण : प्रतिज्ञा पत्र, हुण्डी, विनिमय पत्र।

ऐच्छिक मुद्रा दो प्रकार की होती है।

बैंकिंग मुद्रा : जैसे की चेक, ड्राफ्ट, यात्री चेक , पोस्टल आर्डर आदि।
साख मुद्रा :   जैसे की प्रतिज्ञा पत्र ,हुण्डी ,बिल ऑफ़ एक्सचेंज आदि।
नोट:
  • जिस मुद्रा में वे सभी विलेख शामिल किये जाते हैं जो बैंकों  या व्यक्तियों पर लिखे जाते हैं। उसे साख मुद्रा कहते हैं।  
  • साख मुद्रा एवं बैंकिंग मुद्रा के मध्य केवल दर्जे या विस्तार का अंतर होता है।

धातु मुद्रा (Metallic Money):

जब मुद्रा किसी धातु विशेष की बनी होती है तो धातु मुद्रा कहलाती है। सिक्के धात्विक मुद्रा के उदहारण हैं। 
उदहारण : स्वर्ण ,चांदी, तांबा ,आदि। 

प्रमाणित या मानक मुद्रा (Standard Money ):

वह मुद्रा जिसका आंतरिक मूल्य तथा अंकित मूल्य समान होता है उसे प्रमाणित मुद्रा कहा जाता है। यह मुद्रा देश की प्रधान मुद्रा होती है।  

सांकेतिक मुद्रा (Token Money):

वह मुद्रा जिसका आंतरिक धात्विक मूल्य उसके अंकित मूल्य से कम होता है उसे सांकेतिक मुद्रा कहते है। 
उदहारण : भारतीय सिक्के सांकेतिक मुद्रा के मुद्रा के उदहारण हैं। 

कागजी मुद्रा (Paper Money):

एक विशेष किस्म के कागज पर लिखित प्रतिज्ञा पत्र [ मैं धारक को ----- (जितने मूल्य का नोट है) अदा करने का वचन देता हूँ। जिसके माध्यम से निर्गमन अधिकारी (केंद्रीय बैंक या सरकार) धारक को उस अंकित राशि को देने का वचन देता है।] इसका निर्गमन एक निश्चित विधान के अंतर्गत किया जाता है। कागजी मुद्रा कहलाती है। 
नोट: भारत में कागजी मुद्रा का निर्गमन RBI  द्वारा किया जाता है। RBI 'न्यूनतम निधि / सुरक्षा पद्ति' (MRS - MINIMUM RESERVE SYSTEM) के अंतर्गत नए नोट छापने का कार्य करती है अर्थात न्यूनतम मात्रा में धातु रखकर नोट छापने का कार्य करती है। वर्तमान में यह MRS  ₨ 200 करोड़ मूल्य का है। इसमें से 115 करोड़ का सोना तथा 85 करोड़ मूल्य की विदेशी मुद्रा के रूप में रखना अनिवार्य है। यह पद्ति RBI ने वर्ष 1957 के बाद अपनायी। 

हॉट मनी (Hot Money): 

जिस मुद्रा में शीघ्र पलायन कर जाने की प्रवर्ति होती है अर्थात जिस स्थान पर लाभ मिलने की संभावनाएं अधिक होती है, उसी स्थान पर यह स्थांनतरित हो जाता है। उस विदेशी मुद्रा को हॉट मनी कहा जाता है। 
उदहारण: शेयर बाजार में लगी विदेशी मुद्राएं हॉट मनी के उदहारण हैं। 

प्लास्टिक मुद्रा (Plastic Money):

विभिन्न बैंकों या कम्पनयों द्वारा जारी किये गए क्रेडिट एंड डेबिट कार्ड हो की प्लास्टिक मनी कहा जाता है। 
  • डेबिट कार्ड (Debit Card): बैंक खाते में जितनी धन राशि जमा होती है उसी धन राशि या फिर उससे कम धन राशि का प्रयोग सामान खरीदने में प्रयोग किये जाने वाले कार्ड डेबिट कार्ड कहा जाता है। 
  • क्रेडिट कार्ड (Credit Card): बैंक में जमा धन से अधिक धन राशि से सामान खरीदा जा सकता है। लेकिन एक निश्चित समय के भीतर शेष धन राशि बैंक में जमा करनी होती है।  अन्यथा उस अतिरिक्त धन राशि पर ब्याज अदा करना होता है। इसमें ब्याज की दर भी हाई होती है। क्योंकि बैंक द्वारा यह धन ऐसे समय में बिना किसी प्रतिभूति की आड़ में दिया गया था।  

आंतरिक मुद्रा(Inside Money):

जिस प्रकार की मुद्रा का प्रयोग निजी क्षेत्र या संस्थानों के द्वारा आपस में ही ऋणों के भुगतान के लिए किया जाता है। उसे आंतरिक मुद्रा कहते है चूँकि यह निजी क्षेत्र की अपनी मुद्रा होती है अर्थात यह एक निजी क्षेत्र  का दूसरे निजी क्षेत्र पर ऋण होता है। जिसके कारण निजी क्षेत्र के धन में कोई वृद्धि नहीं होती है। 

बाह्य मुद्रा (Outside Money):

निजी क्षेत्रों की वित् सम्बन्धी समस्यों का समाधान सार्वजानिक क्षेत्रों के माध्यम से कर लिया जाये तो उसे बाह्य मुद्रा कहते है। इस प्रकार की मुद्रा का प्रयोग मुद्रा स्फीति की समस्या को दूर करने के लिए किया जाता है। जिसके परिणाम सवरूप मुद्रा की तरलता बढ़ जाती है। 

बाह्य मुद्रा का सृजन सरकार दो प्रकार से करती है :-

  1. सरकार द्वारा नए नोट छापकर निजी क्षेत्र की आवश्कता की पूर्ति की जाती है। 
  2. सरकार सार्वजनिक ऋण या विदेशों से ऋण लेकर निजी क्षेत्र को दे देती है। 
नोट : बाह्य मुद्रा निजी क्षेत्र के धन में वृद्धि करती है जबकि आंतरिक मुद्रा नहीं। 

नजदीकी मुद्रा (Near Money):

ऐसी सम्पति जिसे आसानी से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सके नजदीकी मुद्रा कहलाती है। 
उदहारण : सोना ,चांदी 

वैधानिक या अनुज्ञापित मुद्रा (Legal /Fiat Money):

भारत में चलने वाले नोट एवं सिक्के वैधानिक मुद्रा के उदहारण हैं। इस प्रकार की मुद्रा सरकार के अनुदेशों पर ही जारी की जाती है। अर्थात इसे स्वीकार करना क़ानूनी बाध्यता होती है। 

कॉशन मनी (Caution Money):

जब किसी सविंदा और जमानत के लिए मांगी जाने वाली राशि कॉशन मनी कही जाती है। 

आज के टॉपिक में बस इतना ही........ आशा करता हूँ की आपको समझ आ गया होगा। आपको टॉपिक कैसा लगा जरूर बताइयेगा। हमेशा की तरह आपके सुझाव आमंत्रित है। धन्यवाद ........

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