Thursday, January 23, 2020

Brief History of banking in India | भारत में बैंकिंग प्रणाली का इतिहास

              ऋग्वैदिक काल से ही मुद्रा को सहेजने वाली एजेंसियों और उन पर ब्याज देने वाली संस्थाओं का अस्तित्व रहा हैं। रोज आधुनिक और नई तकनीक ला रहे हमारे देश के बैंकों का इतिहास भी कम रोचक नहीं है। प्रिय विद्यार्थियों नमस्कार मैं हूँ विनय और आज हम भारत के दो सौ साल पुराने बैंकिंग इतिहास के बारे में चर्चा करंगे। जिसकी  शुरुआत ब्रिटिश राज में हुई थी। क्यूंकि बैंक  इतने महत्वपूर्ण हो चुके हैं कि इनके बिना हम अपने फाइनेंशियल मैनेजमेंट की कल्पना तक नहीं कर सकते हैं। इस लेख  को पढ़ें और शेयर करें अगर यह आपके लिए मददगार था। 


                      
                जैसा के आप जानते हो की भारत में आधुनिक बैंकिंग सेवाओं की शुरुआत 19 वीं शताब्दी के शुरु में ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 3 बैंकों से की थी। चूँकि सबसे पहले अंग्रेजों का प्रभाव बंगाल में बढ़ा इसलिए उन्होंने अपना पहला बैंक 1809 में 'बैंक ऑफ़ बंगाल' के नाम से  बंगाल में खोला। इसके बाद उन्होने अपने दूसरे प्रभाव वाले क्षेत्र मुंबई में  1840  'बैंक ऑफ़ बॉम्बे' के नाम से और तीसरा बैंक 1843 में 'बैंक ऑफ़ मद्रास' के नाम से मद्रास में खोला । 

               1857 की क्रांति के बाद जैसा के आप सब जानते हो की भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया और सत्ता ब्रिटेन की महारानी के हाथों में चली जाने के बाद इन तीनो बैंकों का विलय एक नए बैंक 'इम्पीरियल बैंक' में कर दिया गया और आजादी के बाद इम्पीरियल बैंक का नाम बदल कर 1955 में भारतीय स्टेट बैंक कर दिया गया।  भारत का यह सार्वजानिक क्षेत्र का बैंक था। 
                देश के तौर पर बैंकिंग संस्थाओं को रेगुलेट करने और सरकारी मुद्रा के प्रबंधन के लिए भारत सरकार को एक संस्था की जरुरत महसूस हुई तो 1949 में भारतीय रिज़र्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। जिसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 को रॉयल कमीशन की सिफारिश पर स्थापित की गयी था। आजादी के बाद भी केंद्रीय बैंक के तौर पर इसकी भूमिका को यथावत रखा गया। 
               रिज़र्व बैंक को भारत में बैंकिंग को रेगुलेट करने का अधिकार भी दे दिया गया, इसके बाद भारत के बैंकिंग क्षेत्र में बड़ा परिवर्तन तब देखने को मिला जब सरकार ने 1959 में भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम के माध्यम से आठ क्षेत्रीय बैंको को रेगुलेट कर दिया और इन्हे भारतीय स्टेट बैंक का ही अनुषंगी बना दिया गया। इसमें स्टेट बैंक ऑफ़ बीकानेर एंड जयपुर ,स्टेट बैंक ऑफ़ त्रावणकोर ,स्टेट बैंक ऑफ़ हैदराबाद ,स्टेट बैंक ऑफ़ इंदौर , स्टेट बैंक ऑफ़ मैसूर , और स्टेट बैंक ऑफ़ पटियाला प्रमुख थे। 
               इसी सफल राष्ट्रीयकरण से प्रेरित होकर भारत सरकार ने इसी तरह का एक बड़ा कदम 19 जुलाई 1969 को उठाया और देश के प्रमुख चौदह बैंको का राष्ट्रीयकरण कर ही दिया। यह पहले से भी बड़ा कदम था जिससे भारतीय बैंको की विश्वसनीयता में बढ़ोतरी हुई और बैंकिंग प्रणाली में यह भारत का मजबूती की तरफ सरहानीय कदम था। 

                कुछ लम्बे समय के बाद ही सही 15 अप्रैल 1980  को हमने फिर से छह बैंको का राष्ट्रीयकरण किया। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र ने 1993 में उस वक्त एक बड़ी छलांग लगयी जब भारतीय रिज़र्व बैंक ने घरेलू बैंकों को बैंकिंग गतिविधियां करने की अनुमति दे दी और प्राइवेट क्षेत्र के बैंक भी अब सार्वजानिक बैंको की तरह भारतीय जनता को अपनी सेवायें देने लगे।    
               अगर आपको में किसी बैंक के बारे में बताने को बोलूं तो आप शायद यही बोलेंगे की एक ऐसी जगह जहां आप अपने पैसे को सुरक्षित रखते है और उन्ही पैसों का लेन देन करते हैं। तो सर आप समझ ले की आपका ज्ञान सिमित है। मैं आपको बता के चलूँ की आम लेन देन से भी अलग पूरी दुनिया में बेकिंग के तौर पर और भी बहुत कुछ होता है। बैंकिंग के काम भी अलग होते है और उनकी सेवा देने का माध्यम भी बहुत अलग होता है।  इनमे से कुछ बैंक का नाम तक अपने नहीं सुना होगा।  यहाँ मै आपको ऐसे ही कुछ बैंकों के बारे में बता रहा हूँ ताकि आपको पता चल जाये की दुनिया कि अर्थवयवस्था में हमारे बैंको का कितना रोल है। 

भारत में बैंकिंग के प्रकार/types of banking system of india 

                भारतीय बैंकिंग  के प्रकारों को पढ़ने से पहले मैं आपको एक बात साफ कर देना चाहता हूँ की इनके काम में कोई ज्यादा मोटा अंतर नहीं होता है, बल्कि एक बिलकुल महीन सा अंतर है जिनकी वजह से इनका काम करने का तरीका बदल जाता है। ये अपने उपभोगता को अलग अलग प्रकार की सेवाएं देती है।

रिटेल बैंक/retail banking :

  • ये वे बैंक है जिनके बारे में हमारी दुनिया की बहुत बड़ी आबादी जानती है और इनसे सेवाएं भी लेती है।
  • ये बैंक मुख्यता आम आदमी के लिए काम करते है और उनके लिए पैसे का प्रबंध करते है।  
  • कोई भी व्यक्ति इनमे अपना खाता खुलवा सकता है। 
  • ये बैंक उपभोगता को डेबिट कार्ड ,क्रेडिट कार्ड,और चेक जैसी सुविधएं प्रदान करते है। 
  • इस प्रकार के बैंकों का व्यापारिक ढांचा मूल रूप से कम ब्याज पर पैसे लेकर ज्यादा ब्याज पर उपलब्ध करवाने वाले बिज़नेस मॉडल पर आधारित होता है। 
  • यह बैंक अपने ग्राहक को बचत पर ब्याज देता है और जरूरत पड़ने पर उधार पर ब्याज उपलब्ध भी करता है। 

वाणिज्य बैंक/commercial banking :

  • जैसा की नाम से स्पष्ट है की मूल रूप से वाणिज्य सेवाएं उपलब्ध करने के काम आता है। 
  • इसमें खाता केवल व्यापारी या बिज़नेसमैन ही खुलवा सकते है। 
  • इस तरह के उपभोगताओ को अपने व्यापार के अनुरूप लेन-देन के लिए अलग तरह की सेवाओं और बैंक गारंटी की जरूत होती है जो की ये बैंक उपलब्ध करतें है। 
  • ये बैंक बड़ी बड़ी राशियों के लेन देन का प्रबंध करते है और मैनेजे भी करते है। 

इन्वेस्टमेंट बैंक/investment banking :

  •  ये बैंक अपनी फाइनेंसियल विशेषज्ञता के लिए जाने जाते है जिनकी वजह से व्यवसायी इनकी सेवाएं लेते है। 
  • किसी कंपनी को इन्वेस्टर खोजने के लिए ये बैंक उन्हें सहयता उपलब्ध कराते है ताकि वह अपनी कंपनी को शेयर बाजार में लिस्टेड करा सके। 
  • ये बैंक अपने ग्रहकों को निवेश भी दिलवाते है और उन निवेश की गारंटी भी देते है। 
  • ये बैंक अपने ग्राहक को बेहतर बनाने का सुझाव भी देते है ताकि वह बिज़नेस में रेटिंग कर सके।

सेंट्रल बैंक/central banking :

  • इस तरह के बैंक पूरी दुनिया की मुद्रा प्रणाली को संभालने का काम करते हैं। 
  • प्रत्येक देश अपनी मुद्रा के चलन पर नजर रखने के लिए उसे मूल्यवान बनाने के लिए ऐसी संस्थओं का निर्माण करता है। 
  • जैसे की भारत में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया इसी बैंक की भूमिका निभाता है। 
  • देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए ये बैंक अपनी नीतियां बनते है। जिससे उस देश को बहुत फायदा होता है। 
  • इस तरह के बैंक मुद्रा प्रबंधन करने के साथ साथ उसके अवैध उपयोग पर भी नजर रखते है। 
  • ये बैंक अपने देश के सभी बैंको को लाइसेंस भी प्रदान करते हैं तथा नियंत्रण भी रखते है। 

क्रेडिट यूनियन बैंक/credit union banking :

  • ये यूनियन लघु ऋण संगठन के मूल रूप से एक स्वयं सहायता समूह होते है जो किसी बैंक की तरह जी काम करते है। 
  • ये संगठन मुख्यता अपने सदस्यों को ही सेवा देते है। 
  • ऐसे संगठन अपने सदस्यों के लिए लाभ और हानि को आधार न मानते हुए जरूत पर पैसा उधार देते है। 
  • इसमें सारा धन भी इसी के सदस्यों के द्वारा ही इकठा किया होता है। जिस पर किसी तरह का ब्याज है लिया जाता या बहुत कम होता है। 

ऑनलाइन बैंक/online banking :

  • इन बैंकों ने अपनी सेवाएं इंटरनेट के चलन के बाद ही देनी शुरू की हैं। जो की अपनी सारी सेवाएं वेब के माध्यम से देते है। 
  • यहाँ पर ग्राहक ऑनलाइन अपना अकाउंट खोल सकता है और लेन देन भी ऑनलाइन ही करता है। 
  • भारत में अभी इसकी शुरुआत ऑनलाइन वॉलेट्स और मोबाइल वॉलेट्स इन ऑनलाइन बैंकिंग की प्रारम्भिक अवस्था मानी जा रही है। 
  • माना जा रहा है की आने वाले 10 वर्षों में आधी से ज्यादा आबादी इससे जुड़ चुकी होगी। 

म्यूच्यूअल बैंक/mutual banking :

  • यह बैंकिंग काफी कुछ क्रेडिट यूनियन बैंकिंग से मिलती जुलती है लेकिन जहां क्रेडिट यूनियन सिर्फ व्यवसाय करने के लिए उधार देती है वहीँ म्यूच्यूअल बैंकिंग निजी जरूरतों को भी ध्यान में रखकर ऋण देती हैं। 
  • इस बैंकिंग प्रक्रिया में भी लेन  देन केवल सदस्यों के बिच ही होता है। 
  • यह बैंकिंग ज्यादातर विकाशील देशों या पिछड़े देशों में देखने को मिलती है क्योंकि वहां पर लाइसेंस की प्रक्रिया बहुत ही आसान है। 
धन्यवाद्.......

0 comments