अर्थशास्त्रीय अवधारणा के अनुसार वस्तुओं की क़ीमत में वृद्धि या कमी होती रहती है जिससे हमारी अर्थव्यवस्था में भी उतार चढाव आता है। जिसे हम मुद्रा स्फीति/inflation के रूप में जानते हैं इसीलिए हम आज इकोनॉमिक्स के महत्वपूर्ण विषय मुद्रा स्फीति/inflation के बारे में कुछ चर्चा करेंगे। नमस्कार मैं हूँ विनय चलिए कुछ नया सिख लेते हैं। इस लेख को पढ़ें और शेयर करना न भूलें अगर यह आपके लिए मददगार था।
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मुद्रा स्फीति/inflation गणितीय आकलन पर आधारित एक अर्थशास्त्रीय अवधारणा है जिससे बाज़ार में मुद्रा का प्रसार व वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि या कमी की गणना की जाती है। अर्थात वस्तुओं की क़ीमत में वृद्धि मुद्रा स्फीति कहलाती है। इस स्थिति में मांग आपूर्ति से ज्यादा हो जाती है।
मुद्रा स्फीति के कारण :-
1) लागत जनित मुद्रा स्फीति/cost pull inflation :-
यदि लागत बढ़ेगी तो मुद्रा स्फीति भी बढ़ेगी ।
COST ↑ ➜ INFLATION ↓
लागत बढ़ने के कारण:-
A) कच्चे माल की कीमत में बढ़ोतरी
B) परिवहन की कीमत में बढ़ोतरी
C) मजदूरी में बढ़ोतरी
D) मौद्रिक नीति का सख्त होना
E) लागत मूल्य में वृद्धि
2) मांग जनित मुद्रा स्फीति/demand pull inflation:-
यदि मांग बढ़ेगी तो महंगाई भी बढ़ेगी ।
DEMAND ↑ ➜ INFLATION ↓
मांग बढ़ने के कारण:-
A) जनसंख्या वृद्धि
B) क्रय शक्ति में वृद्धि
C) काले धन की मात्रा बढ़ जाना
3)आपूर्ति जनित मुद्रा स्फीति/supply pull inflation :-
यदि आपुर्ति में कमी होगी तो महंगाई बढ़ेगी।
SUPPLY ↑ ➜ INFLATION ↓
आपुर्ति में कमी के कारण :-
A) उत्पादन में कमी हो जाना
B) काला बाजारी बढ़ जाना
C) प्राकृतिक आपदाओं के कारण
D) कंपनी का खराब प्रबंधन
NOTE:-
अर्थव्यवस्था के विकास के लिए एक निश्चित मात्रा में महंगाई (मुद्रा स्फीति) का होना आवश्क है क्योंकि यह उत्पादक के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य करती है
मुद्रा स्फीति की गणना/calculation of inflation:
मुद्रा स्फीति की गणना के लिए कीमत सूचकांक (price index) का उपयोग किया जाता है । यह 2 प्रकार का होता है।
1) थोक मूल्य सूचकांक / Whole sale price index
2) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक/ consumer price index
थोक मूल्य सूचकांक :
A)इस सूचकांक में वस्तुओं के थोक मूल्य की गणना की जाती है ।
B) इसमे केवल वस्तुएं शामिल की जाती है ।
C) समष्टिगत आर्थिक नीति के लिए उपयोगी
D) इसकी गणना DIPP (department of industry policy & promotion) द्वारा की जाती है। तथा यह डिपार्टमेंट मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स & इंडस्ट्री के अधीन आता है।
E)थोक मूल्य सूचकांक का आधार वर्ष (base year) 2011-2012 है। इससे पहले यह (2004-2005) था ।
F) इसमे 676 वस्तुओं (basic thing) को लेकर थोक मूल्य सूचकांक count किया जाता है ।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक :
A) इस सूचकांक में वस्तुओं एवं सेवाओ के उपभोक्ता मूल्य की गणना की जाती है।
B) इसमे वस्तु एवं सेवाएं दोनो शामिल होती है।
C) उपभोक्ता वास्तविक क्रय शक्ति के लिए उपयोगी।
D) इसकी गणना CSO (central statistical office) द्वारा की जाती है। यह डिपार्टमेंट सांख्यकी एवं कार्यक्रम कार्यन्वयन मंत्रालय के अधीन आता है।
E) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का आधार वर्ष (base year) 2012 है ।इससे पहले यह (2010) था।
CPI(N) N-new/national
/ \ U-urban
/ \ U-urban
CPI(U) CPI(R) R-rural
NOTE:-
भारत में महंगाई की गणना थोक मूल्य सूचकांक के अनुसार की जाती है ।
मुद्रा स्फीति की स्थितियां:-
1) रेंगती हुई मुद्रा स्फीति/creeping inflation:
एक अंक में महंगाई रेंगती हुई मुद्रा स्फीति कहलाती है।
2) कूदती हुई मुद्रा स्फीति/ galloping inflation:
दो या दो से अधिक अंकों में महँगाई कूदती हुई मुद्रा स्फीति कहलाती है।
3) अति मुद्रा स्फीति /hyper inflation:
यह बहुत अधिक मुद्रा स्फीति की दर है। इस स्थिति में लोगों का मुद्रा से भरोसा उठ जाता है।
4) मुद्रा स्फीति जनित मंदी /stagflation:
वह स्थिति जब मुद्रा स्फीति व मंदी दोनों एक साथ उपस्थित होते है। यह एक जटिल परिस्थिति है।
5) deflation / मुद्रा संकुचन अथवा अवस्फीति :
मुद्रा संकुचन या अवस्फीति मुद्रास्फीति की विपरीत स्थिति है| मुद्रा संकुचन की स्थिति में मुद्रा के मूल्य में वृद्धि होती है तथा वस्तुओं और सेवाओं के कीमत में गिरावट आती है|परन्तु मुद्रा के मूल्य में होने वाली प्रत्येक वृद्धि तथा वस्तुओं और सेवाओं के कीमत में आने वाली प्रत्येक गिरावट को मुद्रा संकुचन नहीं कहा जा सकता है| निम्न स्थितियों में वस्तुओं और सेवाओं के कीमत में होने वाली कमी मुद्रा संकुचन कहलाती है|
NOTE:-
सस्ती मौद्रिक नीति मंदी की समस्याको दूर करने में सहायक है जबकि कठोर मौद्रिक नीति मुद्रा स्फीति की समस्या को दूर करने में सहायक है।
महंगाई के प्रभाव /effects of inflation :
उपभोक्ता ➜ हानि
व्यपारी ➜ लाभ
रोजगार ➜ लाभ
स्थिर आय वाले व्यक्ति ➜ हानि
परिवर्तित आय वाले व्यक्ति ➜ लाभ
ऋणी ➜ लाभ
ऋण दाता ➜ हानि
मुद्रा स्फीति के उपाय:
1) मौद्रिक नीति ( monetary policy)
2) राजकोषीय नीति (fiscal policy)
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