Thursday, February 6, 2020

RAJA RAM MOHAN ROY | BIOGRAPHY, IMPORTANCE, FACTS | HINDI

प्रिय दोस्तों आज मैं भारत के कुछ समाज सुधारकों के बारे में एक श्रंखला शुरू कर रहा हूं। अपेक्षा है कि आपको यह पसंद आएगा। इस श्रृंखला में हम आज भारत के प्रसिद्ध समाज सुधारक राजा राममोहन राय के बारे में चर्चा करेंगे। नमस्कार मैं भी हूं विनय चलिए कुछ नया सीखते हैं। इस लेख को पढ़ें और शेयर करें यदि यह आपके लिए उपयोगी था।


1820 और 1900 के दशक के बीच कई समाज सुधारक थे। जिन्होंने औपनिवेशिक राज्य द्वारा दोनों विधाई हस्तक्षेपों का समर्थन किया और महिला मुक्ति के लिए एक व्यापक कार्यक्रम बनाया। उन्होंने महिलाओं की बेहतर सामाजिक स्थिति और शिक्षा के लिए लड़ने के लिए कई संगठन बनाएं। उनमें से कई ने दमनकारी जाति व्यवस्था के विरोध में आवाज उठाई और सामाजिक समानता के लिए आंदोलन चलाए। उन्हीं समाज सुधारकों में से एक थे राजा राममोहन राय।

राजा राममोहन राय का जन्म राधा नगर गांव में 22 मई 1772 को एक वैष्णव परिवार में हुआ था। यह गांव वर्तमान में हुगली जिला पश्चिम बंगाल में स्थित है। उनके पिता रमाकांत राय रूढ़ीवादी हिंदू ब्राह्मण थे। जबकि राजा राममोहन राय मूर्ति पूजा और रूढ़िवादी हिंदू परंपराओं के विरुद्ध थे। इन्हीं मतभेदों के कारण राजा राममोहन राय घर छोड़कर चले गए थे। लेकिन जब वह वापस घर लौटे तो उनके पिता ने उनके विचार बदलने के लिए आशा नामक लड़की से उनकी शादी करा दी। लेकिन उनका उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

उन्होंने 1814 में आत्मीय सभा का गठन कर समाज में सामाजिक और धार्मिक सुधार शुरू करने का प्रयास किया। उन्होंने महिलाओं को फिर से शादी करने, संपत्ति में हक, समेत महिला अधिकारों के लिए अभियान चलाया। जिनमें सती प्रथा और बहुविवाह मुख्य थे।

1829 में राजा राममोहन राय ने लॉर्ड विलियम बेंटिक की सहायता से सती प्रथा का अंत किया। 1830 में ठगी प्रथा का अंत भी किया ।

राजा राममोहन राय को अकबर द्वितीय के द्वारा 'राजा' की उपाधि दी गई थी तथा लॉर्ड विलियम बेंटिक के द्वारा भी 'राय' की उपाधि दी गई ।

राजा राममोहन राय ने समाज की कुरीतियों जैसे सती प्रथा बाल विवाह के खिलाफ खुलकर संघर्ष किया था तथा लोगों को उनके प्रति घूम-घूम कर जागरूक किया। उन्होंने लोगों की सोच में बदलाव लाने का अथक प्रयास किया। जिसके कारण राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है।

राजा राममोहन राय ने ब्रह्ममेनीकल मैगजीन, संवाद कौमुदी, मीरात-उल-अखबार, बंगदूत जैसे प्रिय पत्रों का संपादन भी किया था। राजा राममोहन राय बांग्ला हिंदी और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ करना बखूबी जानते थे। और इसका बहुत अच्छा उदाहरण बंगदूत नामक पत्र है।

राजा राममोहन राय का 27 सितंबर 1833 को ब्रिस्टल के समीप स्टापलेटन में निधन हो गया।

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