Saturday, March 28, 2020

संसदीय समितियां | सदस्यों की संख्या | उनके कार्य

संसद अपने उत्तरदायित्व को निभाने के लिए अनेक समितियों की सहायता लेती है। यह समितियां सरकार की गतिविधियों पर निरंतर तथा प्रभावी रूप से नियंत्रण रखती हैं। इन समितियों के सदस्य संसद के विभिन्न दलों तथा समूह से लिए जाते हैं। इन समूह तथा दलों को समितियों में प्रतिनिधित्व उनकी सदन में संख्या के अनुपात में दिया जाता है। समितियों की कारवाही सदन की कार्रवाई की भांति ही संचालित की जाती है परंतु इन समितियों में काम करने का वातावरण अनौपचारिक होता है। आज हम इन्हीं लोकसभा की कुछ प्रमुख समितियों के बारे में चर्चा करेंगे। नमस्कार मैं हूं विनय चलिए कुछ नया सीखते हैं। 


मॉटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के आधार पर 1921 से संसदीय समितियाँ अस्तित्व में आई थीं, जिन्हें निरंतर व्यापक रूप से प्रतिष्ठापित किया जाता रहा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-105 में भी इन समितियों का ज़िक्र मिलता है।

 प्राक्कलन समिति 

इस समिति में सदस्यों की संख्या 30 होती है जो लोकसभा से लिए जाते हैं। इन सदस्यों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत पर चुना जाता है। यह समिति सरकार के वार्षिक अनुमानों का परीक्षण करती है तथा प्रशासन में आर्थिक बचत व कुशलता के लिए विकल्प सुझाती है।

 लोक लेखा समिति 

इस समिति में सदस्यों की संख्या 22 होती है जिनमें से 15 लोकसभा व 7 राज्यसभा से लिए जाते हैं। भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक इस समिति की सहायता करता है।यह समिति सुनिश्चित करती है कि सरकार का खर्च संसद द्वारा पारित मांगों से अधिक नहीं है तथा धन उसी उद्देश्य के लिए खर्च किया गया है जिसके लिए वह पास किया गया था। संक्षेप में यह समिति यह सुनिश्चित करती है कि धन नियमों के अनुसार किफायत से खर्च किया गया है।
Note: इस समिति को प्राक्लन समिति की जुड़वां बहन भी कहा जाता हैं। 

 सार्वजनिक संस्थान समिति 

इस समिति के सदस्यों की संख्या 15 होती है जिसमें से 10 लोकसभा व 5 राज्य सभा से लिए जाते हैं।यह समिति सार्वजनिक स्थानों की कार्यविधि की समीक्षा करती है जिसमें उनका लेखा तथा वित्त भी सम्मिलित हैं। ज्ञात रहे कि यह समिति सरकार की नीति तथा सार्वजनिक संस्थानों के दैनिक प्रशासन संबंधी मामलों का परीक्षण नहीं करती

 कार्य मंत्रणा समिति 

 इस समिति में सदस्यों की संख्या 15 (लोकसभा से) होती है तथा इसका अध्यक्ष सभापति होता है । यह समिति संसद का कार्यक्रम नियंत्रित करती है तथा विभिन्न मामलों के विचार के लिए समय निश्चित करती है यह निर्णय करना भी इसी समिति का कार्य है कि सदन का अधिवेशन कब बुलाया जाए

 गैर सरकारी विधेयक तथा प्रस्ताव समिति 

इस समिति के सदस्यों की संख्या 15 होती है । इस समिति का मुख्य कार्य सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किए गए विधायकों का उनके महत्व अनुसार वर्गीकरण करना होता है। 

 प्रवर समितियां 

विभिन्न प्रकार के विधायकों पर विचार करने के लिए इन समितियों का गठन किया जाता है । यह समितियां उन विधेयकों के बारे में जो उन्हें सौंपे गए हैं आवश्यक सूचना एकत्रित करती हैं तथा उनके बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करती हैं।

 निवेदन समिति 

इस समिति में सदस्यों की संख्या 15 होती है । यह समिति इस के सम्मुख प्रस्तुत किए गए निवेदन पत्रों पर विचार करती है तथा समस्याओं का समाधान सुझाती है।

 नियम समिति 

इस समिति के सदस्यों की संख्या भी 15 होती हैस्पीकर इस समिति का पदेन सभापति होता है। यह समिति प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंधी मामलों पर विचार करती है तथा सदन की प्रक्रिया को सुधारने के लिए सुझाव देती है।  प्रायः इस समिति के सभी निर्णय एकमत से लिए जाते हैं।

 विशेषाधिकार समिति 

इस समिति के सदस्यों की संख्या भी 15 है। यह समिति सदस्यों के विशेष अधिकारों के उल्लंघन संबंधी मामलों पर ध्यान देती है तथा उपयुक्त कार्यवाही सुझाती है।

 अधीनस्थ विधि समिति 

यह समिति संसद द्वारा बनाए गए अधीनियमों की व्याख्या हेतु कार्यकारिणी द्वारा बनाए गए नियमों का परीक्षण करती है तथा सुनिश्चित करती है कि यह नियम मुख्य कानून के अनुरूप है या नहीं

 अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी समिति 

इस समिति के सदस्यों की संख्या 30 होती है जिसमें से 20 लोकसभा तथा 10 राज्य सभा से लिए जाते हैं।समिति अनुसूचित जाति व जनजाति आयुक्त की रिपोर्ट पर विचार करती है तथा संसद को रिपोर्ट देती है कि इन सब को लागू करने के लिए प्रशासन क्या कदम उठाए।

 सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति 

इस समिति के सदस्यों की संख्या 15 है जो यह समीक्षा करते हैं कि मंत्रियों द्वारा सदन में दिए गए आश्वासन कहां तक निश्चित समय में कार्यान्वित किए गए हैं।

 सदस्यों की अनुपस्थिति संबंधी समिति  

यह समिति सदस्यों की अवकाश संबंधी प्रार्थना पत्रों का विवेचन करती है। यह उन सब मामलों की भी छानबीन करती है जहां कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 6 माह तक सदन से अनुपस्थित रहता है। यह समिति इस अनुपस्थिति को या तो माफ कर सकती है अथवा उसकी सीट को रिक्त घोषित करें उपचुनाव द्वारा उस सीट को भर सकती है।

 वेतन व भत्तों से संबंधित संयुक्त समिति 

इस समिति के सदस्यों की संख्या 15 है जिसमें 10 लोकसभा से तथा 5 राज्य सभा से लिए जाते हैं।यह समिति सदस्यों के वेतन तथा अन्य सुविधाओं जैसे निवास, टेलिफोन, डाक, सचिवालय, डॉक्टरी सेवाओं को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक नियम बनाती है।

 लाभ के पदों से संबंधित संयुक्त समिति 

इस समिति के सदस्यों की संख्या भी 15 है जिसमें 10 सदस्य लोकसभा तथा 5 सदस्य राज्यसभा से होते हैं। यह समिति संज्ञा तथा राज्य सरकारों द्वारा गठित विभिन्न समितियों तथा संस्थानों के संगठन का परीक्षण करती है।

संसदीय विषय समितियां 

उपरोक्त समितियों के अतिरिक्त अप्रैल 1993 में 17 संसदीय समितियों का गठन किया गया था। जिसमें से छह का गठन राज्यसभा के सभापति तथा 11 का लोकसभा के स्पीकर द्वारा किया जाता है। इसमें प्रत्येक स्थाई समिति के सदस्यों की संख्या 45 है जिसमें 30 लोकसभा तथा 15 राज्यसभा से होते हैं।

 परामर्श समितियां 

प्रत्येक मंत्रालय के लिए संसदीय मामलों का मंत्रालय एक परामर्श समिति का प्रावधान करता है। इन परामर्श समितियों के सदस्य दोनों सदनों से लिए जाते हैं। यह समितियां सदस्यों, मंत्रियों तथा पदाधिकारियों के साथ सरकारी समस्याओं व नीतियों के बारे में विचार-विमर्श करती रहती है।

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