राष्ट्रीय संकट, राज्यों में स्वेतनिक मशीनरी के विफल होने के कारण संकट तथा वित्तीय संकट की स्थिति उत्पन्न होने के समय भारतीय संविधान में तीन प्रकार के संकट आपातकाल की कल्पना की गई है। इन्हें संविधान के अनुच्छेद 352 से 360 में चिन्हित किया गया है।इन्हीं आपातकालीन संकटों में से आज हम वित्तीय आपातकाल जो कि अनुच्छेद 360 में दिया गया है पर चर्चा करेंगे। नमस्कार मैं हूं विनय चलिए कुछ नया सीखते हैं। आपको पोस्ट कैसी लगी मुझे कमेंट में जरूर बताये।
यदि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व या प्रत्यय संकट में है तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 360 का प्रयोग करके वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है।
प्राय: इस प्रकार का संकट जब तक संसद के दोनों सदनों द्वारा उसका अनुमोदन ने कर दिया जाए, केवल 2 माह तक लागू रह सकता है। परंतु यदि संसद के दोनों सदन इसे स्वीकार कर लेते हैं तो इसकी अवधि एक समय में 6 माह हो सकती है। वित्तीय संकट की अवधि अधिक से अधिक 3 वर्षों हो सकती है।
प्राय: इस प्रकार का संकट जब तक संसद के दोनों सदनों द्वारा उसका अनुमोदन ने कर दिया जाए, केवल 2 माह तक लागू रह सकता है। परंतु यदि संसद के दोनों सदन इसे स्वीकार कर लेते हैं तो इसकी अवधि एक समय में 6 माह हो सकती है। वित्तीय संकट की अवधि अधिक से अधिक 3 वर्षों हो सकती है।
वित्तीय आपातकाल का केंद्र-राज्य संबंधों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है जो कि इस प्रकार है
- वित्तीय आपातकाल के समय संघीय कार्यकारिणी राज्यों को वित्तीय मामलों में ऐसे निर्देश दे सकती है जो वित्तीय स्थायित्व प्रत्ययन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
- राष्ट्रपति राज्यों को सभी श्रेणियों के सभी कर्मचारियों अथवा कुछ कर्मचारियों के वेतन व भत्ते कम करने का आदेश दे सकता है। राष्ट्रपति उन कर्मचारियों के वेतन वह भत्ते कम करने का आदेश दे सकता है जो राज्यों में केंद्र के मामलों से संबंधित है। इसमें उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी सम्मिलित होते हैं।
- राष्ट्रपति राज्यों को निर्देश दे सकता है कि विधानसभा द्वारा पारित सभी धन विदेशों को उसके विचार अर्थ सुरक्षित रखें यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि अभी तक राष्ट्रपति ने कभी भी वित्तीय संकट की घोषणा नहीं की है।
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