प्रत्येक अर्थव्यवस्था के लिए मुद्रास्फीति दर का एक विशेष प्रास ही उचित होता है। भारत के लिए यह 4 से 5% माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार प्रत्येक अर्थव्यवस्था में संबंधित प्राश के पार की मुद्रास्फीति प्रतिसार, सुस्ती या मंदी जैसी समस्याएं उत्पन्न करती है। मुद्रास्फीति के अर्थव्यवस्था और विविध आर्थिक गतिविधियों पर बहुआयामी प्रभाव पड़ते हैं जिन्हें हम आज के लेख में पढ़ेंगे। नमस्कार में हूँ विनय चलिए कुछ नया सीखते हैं।
Inflation Definition | Causes of Inflation Rate and Effects | Hindi
मुद्रास्फीति वृद्धि ऋण देने वाले के लाभ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है वृद्धि की मात्रा के बराबर।
मुद्रास्फीति में वृद्धि का मांग पर वृद्धि कारी प्रभाव पड़ता है और उत्पादन बढ़ाने का संकेत मिलता है।
मुद्रास्फीति की वृद्धि ऋण आवंटन की दर को बढ़ाती है। क्योंकि कर्ज लेना सस्ता हो जाता है।
बढ़ी हुई मुद्रास्फीति निवेश को बढ़ाती है क्योंकि यहां एक तरफ ऋण सस्ता हो जाता है वहीं बाजार में उत्पादों की बढ़ी मांग का संकेत भी मिलता है।
हर मुद्रास्फीति के साथ देश की मुद्रा की विनिमय दर में परिवर्तन होता है।इसके बढ़ने से मुद्रा का मूल्य घट जाता (depreciation) है तथा बढ़ने से बढ़ जाता (appreciation) है।
मुद्रास्फीति की वृद्धि देश की वस्तुओं के निर्यात को बढ़ाती है क्योंकि गिरावट के कारण उत्पादों में मूल्य प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है।
मुद्रास्फीति बढ़ने से आयात में कमी होती है क्योंकि गिरावट के कारण देश की मुद्रा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में कमजोर पड़ती है और बराबर मात्रा के आयात के लिए अब अधिक वह करना पड़ता है।
मुद्रास्फीति की हर विरोधी वास्तविक मजदूरी को कम करती है और इस प्रकार वेतन भोगी की क्रय शक्ति और जीवन स्तर में ह्रास होता है।
इन पर बड़ी मुद्रास्फीति का काफी कम प्रभाव पड़ता है। क्योंकि इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं को भी मूल्य वृद्धि होती है जिससे इनकी आय में समतुल्य वृद्धि हो जाती है और महंगाई का प्रभाव उदासीन हो जाता है।
मुद्रास्फीति व्यक्ति के व्यय में वृद्धि करती है जिस कारण अर्थव्यवस्था की बचत दर गिरती है।
मुद्रास्फीति की वृद्धि का करों की वसूली पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि करों की वसूली यथा मूल्य होती है।
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ऋण लेने वाले पर (On the Borrower)
ऋण लेने वाले को मुद्रास्फीति के बढ़ने से वृद्धि की मात्रा के बराबर लाभ होता है। मुद्रास्फीति वृद्धि ऋण देने वाले के लाभ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है वर्दी की मात्रा के बराबर।ऋण देने वाले पर (On Lender)
मुद्रास्फीति वृद्धि ऋण देने वाले के लाभ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है वृद्धि की मात्रा के बराबर।
मांग पर (On Demand)
मुद्रास्फीति में वृद्धि का मांग पर वृद्धि कारी प्रभाव पड़ता है और उत्पादन बढ़ाने का संकेत मिलता है।
ऋण आवंटन पर (On Loan Allocation)
मुद्रास्फीति की वृद्धि ऋण आवंटन की दर को बढ़ाती है। क्योंकि कर्ज लेना सस्ता हो जाता है।
निवेश पर (On Investment)
बढ़ी हुई मुद्रास्फीति निवेश को बढ़ाती है क्योंकि यहां एक तरफ ऋण सस्ता हो जाता है वहीं बाजार में उत्पादों की बढ़ी मांग का संकेत भी मिलता है।
विनिमय दर पर (At The Exchange Rate)
हर मुद्रास्फीति के साथ देश की मुद्रा की विनिमय दर में परिवर्तन होता है।इसके बढ़ने से मुद्रा का मूल्य घट जाता (depreciation) है तथा बढ़ने से बढ़ जाता (appreciation) है।
निर्यात पर (On Export)
मुद्रास्फीति की वृद्धि देश की वस्तुओं के निर्यात को बढ़ाती है क्योंकि गिरावट के कारण उत्पादों में मूल्य प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है।
आयात पर (On Import)
मुद्रास्फीति बढ़ने से आयात में कमी होती है क्योंकि गिरावट के कारण देश की मुद्रा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में कमजोर पड़ती है और बराबर मात्रा के आयात के लिए अब अधिक वह करना पड़ता है।
वेतन भोगी पर (Salaried)
मुद्रास्फीति की हर विरोधी वास्तविक मजदूरी को कम करती है और इस प्रकार वेतन भोगी की क्रय शक्ति और जीवन स्तर में ह्रास होता है।
स्व रोजगारी पर (On self employment)
इन पर बड़ी मुद्रास्फीति का काफी कम प्रभाव पड़ता है। क्योंकि इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं को भी मूल्य वृद्धि होती है जिससे इनकी आय में समतुल्य वृद्धि हो जाती है और महंगाई का प्रभाव उदासीन हो जाता है।
बचत पर (On Savings)
मुद्रास्फीति व्यक्ति के व्यय में वृद्धि करती है जिस कारण अर्थव्यवस्था की बचत दर गिरती है।
करों पर (On Texes)
मुद्रास्फीति की वृद्धि का करों की वसूली पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि करों की वसूली यथा मूल्य होती है।
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