Friday, November 6, 2020

कैबिनेट मिशन योजना | Cabinet Mission Plan....1946

इंग्लैंड के पहले से दिए गए अस्वासन के अनुसार "द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त के बाद  वह भारत को स्वशासन का अधिकार दे देगा।" क्योंकि  इस युद्ध के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार की स्थिति स्वयं दयनीय हो गयी थी और अब भारतीय साम्राज्य पर नियंत्रण रखना सरल नहीं रह गया था। बार-बार पुलिस, सेना, कर्मचारी और श्रमिकों का विद्रोह हो रहा था।  अधिक दिनों तक भारतीय साम्राज्य को सुरक्षित रख पाना इंगलैंड के लिए असंभव होता जा रहा था।  भारत की राजनीति परिस्थिति का अध्ययन करने और समस्या का निदान खोजने के लिए ब्रिटिश संसद ने एक प्रतिनिधिमंडल मार्च, 1946 को भेजा। इस प्रतिनिधिमंडल ने Lord Wavell तथा भारतीय नेताओं से मिलकर एक योजना तैयार की जिसे “कैबिनेट मिशन/Cabinet Mission” के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य था भारत में पूर्ण स्वराज्य लाना। इसने भारत के लिए एक नया संविधान तथा एक अस्थाई सरकार की स्थापना का लक्ष्य रखा था। नमस्कार मैं हूँ विनय और आपके लिए एक छोटे से टॉपिक पर चर्चा करने के लिए हाजिर हूँ। चलिए कुछ नया सीखतें हैं। 


महात्मा गाँधी के विचारानुसार “तत्कालीन परिस्थतियों में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत यह सर्वोत्तम प्रलेख था।” लेकिन इस योजना का सबसे बड़ा दोष यह था कि इसमें केंद्र सरकार को काफी दुर्बल रखा गया था और प्रांत को अपना निजी संविधान बनाने का अधिकार था। क्रिप्स मिशन की तरह ही कैबिनेट मिशन भी न तो पूरी तरह स्वीकृत की जा सकती थी और न ही अस्वीकृत। 

कैबिनेट मिशन योजना की मुख्य बातें – CABINET MISSION PLAN

i) ब्रिटिश प्रान्तों और देशी राज्यों को मिलाकर एक भारतीय संघ का निर्माण किया जायेगा. भारतीय संघ के अधीन परराष्ट्र नीति, प्रतिरक्षा और संचार व्यवस्था रहेगी, जिसके लिए आवश्यक धन भी संघ को ही जुटाना होगा। 

ii) संघ की एक कार्पालिका और विधानमंडल होगा जिसमें ब्रिटिश प्रान्तों और देशी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे. अन्य सभी विषय सरकार के अधीन होंगे। 

iii) प्रान्तों को यह अधिकार दिया गया कि वे अलग शासन सबंधी समूह बनाएँ. भारत के विभिन्न प्रान्तों को तीन समूहों में बाँटा गया – a) मद्रास, बम्बई, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, बिहार और उड़ीसा b) उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत, पंजाब और सिंध c) बंगाल और असम. प्रत्येक समूह को अधिकार दिया गया कि वह अपने विषय के सम्बन्ध में निर्णय लें और शेष विषय प्रांतीय मंत्रमंडल को सौंप दें। 

iv) देशी राज्यों के द्वारा जो विषय संघ को नहीं सौंपे जायेंगे उनपर देशी राज्यों का ही अधिकार होगा। 

v) संविधान के निर्माण के बाद ब्रिटिश सरकार देशी राज्यों को सार्वभौम संप्रभुता का अधिकार हस्तांतरित कर देगी. भारतीय संघ में सम्मिलित होने अथवा उससे अलग रहने का निर्णय देशी राज्य स्वयं करेंगे। 

vi) योजना के कार्यान्वित होने के दस वर्ष पश्चात् या प्रत्येक दस वर्ष पर प्रांतीय विधानमंडल बहुमत द्वारा संविधान की धाराओं पर पुनर्विचार कर सकता है। 

संविधान के निर्माण से सम्बंधित निम्नलिखित बातें कैबिनेट मिशन में निहित थीं –


i) प्रति दस लाख की जनसँख्या पर एक सदस्य का निर्वाचन होगा। 

ii) प्रान्तों के संविधानसभा में प्रतिनिधित्व आबादी के आधार पर दिया जायेगा। 

iii) अल्पसंख्यक वर्गों को आबादी से अधिक स्थान देने की प्रथा समाप्त हो जाएगी। 

iv) रियासतों को भी जनसंख्या के आधार पर ही प्रतिनिधित्व दिया जायेगा। 

v) संविधान सभा की बैठक दिल्ली में होगी और प्रारम्भिक बैठक में अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारियों का चुनाव कर लिया जायेगा। 

vi) प्रान्तों के लिए अलग संविधान की व्यवस्था भी योजना के अंतर्गत थी. प्रत्येक समूह अपने संविधान के सम्बन्ध में तथा संघ में रहने का निर्णय करेगा। 

vii) केंद्र में एक अस्थायी सरकार की स्थापना होगी और उसमें भारत के सभी प्रमुख दलों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जायेगा। केन्द्रीय शासन के सभी विभाग इन प्रतिनिधियों के अधीन रहेंगे तथा वायसराय इनकी अध्यक्षता करेगा। 

viii) इंगलैंड भारत को सत्ता सौंप देगा. इस सिलसिले में जो मामले उत्पन्न हों उन्हें तय करने के लिए भारत और इंगलैंड के बीच एक संधि होगी। 

अंततः 14 जून, 1946 को कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने इस योजना को स्वीकृत दे दी। हिन्दू महासभा तथा साम्यवादी दल ने इसकी कटु आलोचना की।  अंतरिम सरकार की स्थापना के प्रश्न पर कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में मतभेद हो गया।  मुस्लिम लीग ने दावा किया कि वह कांग्रेस के बिना ही अंतरिम सरकार का निर्माण कर लेगी लेकिन वायसराय ने लीग के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।  1946 के चुनाव में निर्वाचन के लिए निर्धारित कुल 102 स्थानों में कांग्रेस को 59 स्थान प्राप्त हुए थे और मुस्लिम लीग को मात्र 30 स्थान प्राप्त हुए. मुस्लिम लीग को इस चुनाव परिणाम से घोर निराशा हुई। 8 अगस्त, 1946 को कांग्रेस की कार्य समिति ने प्रस्ताव पारित कर अंतरिम सरकार बनाने की योजना स्वीकार कर ली।  अंतरिम सरकार ने 2 सितम्बर, 1946 को अपना कार्यभार संभाल लिया और पंडित नेहरु इसके प्रधानमंत्री बने. आगे चलकर वायसराय की सलाह पर मुस्लिम लीग ने अक्टूबर 1946 को सरकार में शामिल होना स्वीकार कर लिया, लेकिन सरकार को सहयोग देने के बदले यह हमेशा उसके कार्य में अड़ंगा डालती रही। कैबिनेट मिशन ने भारत के विभाजन का मार्ग तैयार कर दिया था। 

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